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छत्तीसगढ़ का मध्य कालीन इतिहास

1. कलचुरी वंश a. रतनपुर b. रायपुर

2.. नागवंश

a. फणिनागवंशी ( कवर्धा ) b.छिंड़कनागवंशी ( चक्रकोट )

3. सोमवंश

कांकेर

4. काकतीय वंश

बस्तर

कलचुरियों की ऐतिहासिक पृष्ट भूमि

कलचुरियों की ऐतिहासिक पृष्ट भूमि क्रिशनराज ( कलचुरी वंश के आदिपुरुष या मूलपुरुष )शंकरगढ़ प्रथम ( 557 से 600 ईस्वी तक )बुधराज ( मधयप्रदेश के कलचरी वंश )महिष्मान ( महिष्मति नगर बसाया )वम्राजदेव ( टीपुरी के कलचुरी वंश के संस्थापक )कोकलदेव प्रथम ( त्रिपुरी को स्थाई राजधानी बनाया )शंकरगढ़ द्वितीय ( छतीशगढ के पाली क्षेत्र को जीता )लक्षमणराज कोकलदेव द्वितीय कलिंगराज ( 1000 इसा में पाली क्षेत्र को पुनः जीतकर कलचुरी वंश की स्थापना की ।

कलचुरिवंश राजवंश

कलचुरिवंश राजवंश

भारत के इतिहास में कलचुरी राजववंश का स्थान महत्पूर्ण है । जिन्होंने भारत के किसी न किसी क्षेत्र में 550 इसा से लेकर 1740 तक शासन किया , अर्थात इनकी शासन अवधि लगभग 1200 वर्षों की है , जो किसी भी राजवंश के लिए सर्वाधिक अवधि है । कलचुरिवंश का मूल पुरुष कृष्णराज था । जिसने इस वंश की स्थापना की और 500 से 575 तक शासन किया ।तत्पश्चात उनके पुत्र शंकरगढ़ परथन ने 575 से 600 तक शासन किया और शंकरगढ़ के बाद उसके पुत्र बुधराज ( 600 से 620 तक ) ने शासन किया किया , किन्तु 620 के बाद से लगभग दो सवाई वर्षों तक कलचुरियों की स्थित अज्ञात – सी रही । राजा कोकल्ल ताम्रपत्र से कलचुरियों को ही हैयवंशिये के नाम से भी जाना जाता था ।

मधयप्रदेश में कलचुरी वंश

हैहयवंशी महिष्मान ने महिष्मति नगर बसाया था । आद्य कलचुरी नरेशों की राजधानी महिष्मति थी । इंदौर रियासत में स्थित महेस्वर नामक स्थल को महिष्मति मन गया है । कलचुरी नरेशदोन की कुल जकजडहनि का गोरो इसे प्राप्त रहा है तथा यहीं से कलचुरियों ने उत्तर और दक्षिण भारत भारत में अपने साम्राज्य का क्रमश विस्तार किया । इस विस्तार अभियान में अनेक लड़ाइयां लड़ीं गई ।कालंजर , त्रिपुरी , प्रयाग , काशदी, तुम्माण , रतनपुर , रायपुर खल्वाटिका इत्यादि समय – समय पर इनकी राजधानी रही ।

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