आपात शब्द से परिचित होंगे जिससे अधिकांश इसके अंग्रेजी शब्द इमरजेंसी के नाम से बेहतर समझते हैं आत्महत्या इमरजेंसी कृषि तंत्र में आई अव्यवस्था को व्यवस्था की वह खतरनाक स्थिति है जो तंत्र की अपेक्षित स्थिति से विपरीत है संविधान निर्माताओं ने दूरदर्शिता अपनाते हुए इसे जर्मनी के संविधान से अपनाया आप की व्यवस्था को रखने के कई कारण थे उन्हें पता था कि नई-नई स्वतंत्रता की इस राह में कितनी बाधाएं हैं संघ राज्य क्षेत्र वाले अध्याय में आपने देखा होगा कि भारत के प्रांतों को संघ के झंडे के संरक्षण में लाया गया था उनकी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करते हुए उन्हें राष्ट्र के निर्माण में भागीदारी बनाना एक चुनौती दी थी लेकिन किसी भी हालात में संघ की संप्रभुता और अखंडता से समझौता नहीं किया जा सकता था इसी कारण केंद्र को अधिक सुदृढ़ और आवश्यकता पड़ने पर शासन व्यवस्था को संवैधानिक रूप से पूर्ण नियंत्रित करने के लिए आपात की व्यवस्था को अपनाया गया हालांकि अंबेडकर ने कहा भी था कि आपात का उपयोग यदा-कदा ही होगा लेकिन राजनीतिक प्रशासनिक एवं अन्य कारणों से व्यवस्था का न केवल कई बार उपयोग किया गया बल्कि कई बार दुरुपयोग भी किया गया।
संवैधानिक स्थिति
भारत के संविधान के भाग अट्ठारह के अनुच्छेद 352 से 360 तक आपात की व्यवस्था रखी गई है हालांकि अनुच्छेद 365 भी आपात व्यवस्था से संबंधित है जो संविधान के भाग xviv मैहर क्षेत्र से 52 से 360 के बीच तीन प्रकार के आपात व्यवस्था से संबंधित प्रावधान है जो निम्नलिखित हैं
- राष्ट्रीय आपात
- राष्ट्रपति शासन
- वित्तीय आपात
राष्ट्रीय आपात :- यह बाहरी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न स्थिति में।
राष्ट्रपति शासन :- राज्यों में संवैधानिक विफलता की स्थिति में।
वित्तीय आपात :- वित्तीय स्थिति या वित्तीय साख के डगमगाने या खराब होने की स्थिति में।
भारतीय संविधान के भाग अट्ठारह के वर्णित आपात उपबंध से संबंधितअनुच्छेद
अनुच्छेद 352 -: आपात की उद्घोषणा
अनुच्छेद 353 -: आपात की घोषणा का प्रभाव।
अनुच्छेद 354 -: जब आप बात की उद्घोषणा परिवर्तन में हो तब राजस्व के वितरण संबंधी उप बंधुओं का लागू होना।
अनुच्छेद 355 -: बाह्य और आंतरिक अशांति से राज्यों की सुरक्षा का संघ का कर्तव्य।
अनुच्छेद 356-: राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध।
अनुच्छेद 357 -: अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अधीन विधाई शक्तियों का प्रयोग।
अनुच्छेद 358-: आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उप बंधुओं का निलंबन।
अनुच्छेद 359- आपात के दौरान संविधान के भाग 3 द्वारा प्रदत अधिकारियों के प्रवर्तन का निलंबन।
अनुच्छेद 360 -: वित्तीय आपात के बारे में उपबंध
अनुच्छेद 365 – राज्यों में आपात के संदर्भ में राष्ट्रपति की संतुष्टि के संबंध में उपबंध।
राष्ट्रीय आपात दो तरह के हो सकते हैं –
बाहरी राष्ट्रीय आपात – बाहय कारणों से भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में हो।
आंतरिक राष्ट्रीय आपात -: आंतरिक कारणों से भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में हो
राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा का प्रभाव
हमने संघ राज्य क्षेत्र के आर्टिकल में पड़ा है कि कैसे आवश्यकता पड़ने पर संघात्मक प्रणाली को एकात्मक प्रणाली में संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत परिवर्तित किया जाता है जिसमें लगभग सभी कार्यपालिका विधायिका वित्तीय एवं अन्य शक्तियों केंद्र के पास हस्तारित हो जानती है इस उपक्रम का सबसे महत्वपूर्ण औजार निश्चित रूप से राष्ट्रपति को प्रदत्त आपात शक्तियां हैं। राष्ट्रीय आपात के लागू होने के उपरांत कार्यपालिका और विधायिका को असीमित शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं और इसे पढ़ने वाले प्रभावों को निम्न श्रेणियां में वर्गीकृत किया जा सकता है
- कार्यपालिका पर प्रभाव
- विधायिका पर प्रभाव
- वित्तीय प्रभाव
- मूल अधिकारों पर प्रभाव
1. कार्यपालिका पर प्रभाव -: जब राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा लागू हो तब अनुच्छेद 353 का की व्यवस्था द्वारा संघ की कार्यपालिका को इस ढंग से विस्तारित हो जाता है कि वह किसी राज्य को इस बारे में निर्देश दे सकती है कि वह अपनी कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग किस तरह से करें। सामान्य समय में संघ को कार्यपालिका के संबंध में किसी राज्य को उन्हीं विषयों पर निर्देश देने की शक्ति है जो अनुच्छेद 256 और 257 में सुनिश्चित किए हैं।
अतः राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा के बाद भारत सरकार को किसी राज्य को किसी भी विषय पर निर्देश देने की शक्ति मिल जाती है यह ध्यान देने योग्य बात है कि राष्ट्रीय आपात की व्यवस्था में राज्य सरकार का निलंबन नहीं होता लेकिन वह संघ की कार्यपालिका के पूर्ण नियंत्रण में होती है और उद्घोषणा के परिवर्तन में रहते हुए देश का प्रशासन एकात्मक प्रणाली की तरह हो जाती है।
2. विधायिका पर प्रभाव -:
a) जब राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा परिवर्तन में हो तो सांसद विधि द्वारा लोकसभा एवं राज्यसभा विधानसभा की अवधि को एक बार में 1 वर्ष तक बढ़ाकर अनिश्चितकाल तक बढ़ा सकती है इस बीच अगर आपात की उद्घोषणा को वापस ले लिया जाता है तो विस्तारित संसद की अवधि 6 महीने से आगे तक नहीं हो सकती 1976 में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा इस शक्ति का प्रयोग किया जा चुका है।
b) आपात की उद्घोषणा के होते ही संघ के सांसद की विदाई शक्ति का स्वयं ही विस्तार हो जाता है और अनुच्छेद 246 3 द्वारा राज्य सूची के बारे में लगाई गई सभी मर्यादा हट जाती है अर्थात राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा के परिवर्तन में रहने के दौरान संसद को राज्य सूची के बारे में भी विधान बनाने की शक्ति मिल जाती है हालांकि इसमें भी राज्य के विधान मंडल का निलंबन तो नहीं होता परंतु संघ और राज्य के बीच विधाई शक्तियों पर विधान बनाने से संबंधित शक्तियां संघ को प्राप्त हो जाती हैं और राज्य उस विषय पर कोई कानून नहीं बना सकता जब तक आप आप की उद्घोषणा वापस ना ले ली जाए।
c) अनुच्छेद 353 खा में या व्यवस्था की गई है कि ऊपर बताई गई विस्तारित शक्तियों के अधीन संघ की संसद द्वारा बनाई गई विधियों को क्रियान्वयन में लाने के लिए संसद को यह शक्ति होगी वह किसी भी विषय पर संघ की कार्यपालिका को शक्तियां प्रदान करने के लिए या कर्तव्य अध्यारोपित करने के लिए विधि बना सके चाहे वह विषय राज्य सरकार की अधिकारिता में ही क्यों ना आती हो।
3. वित्तीय प्रभाव-: राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा के परिवर्तन में रहने के दौरान राष्ट्रपति अपने आदेश द्वारा संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के आवंटन से संबंधित संविधान के उपबंध को बदल सकता है लेकिन राष्ट्रपति का यह आदेश संसद के अनुमोदन के बिना नहीं लागू हो सकता।
4. मूल अधिकारों पर प्रभाव- राष्ट्रीय आपात के दौरान मूल अधिकारों के संबंध में जो परिवर्तन होते हैं उनका विवरण अनुच्छेद 358 और 359 में दिया गया है 44 म संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा संशोधन किए जाने के बाद मूल अधिकारों के विषय में निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं।
a) अनुच्छेद 358 के अनुसार राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा के साथ ही अनुच्छेद 19 में वर्णित मौलिक अधिकार स्वतंत्र अमृत हो जाते हैं यह निलंबन युद्ध और बाहरी आक्रमण की स्थिति में ही हो सकते हैं।
b) अनुच्छेद 359 के अनुसार राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा के बाद राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 और 21 में वर्णित मौलिक अधिकारों को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों का निलंबन कर सकता है।
क्षेत्रीय भाषाएं
अनुच्छेद 343 346 एवं 347 में क्षेत्रीय भाषाओं से संबंधित प्रावधान है
- किसी राज्य की विधायिका को यह अधिकार है कि वह अपने राज्य के लिए एक या एक से अधिक भाषाओं अथवा हिंदी का चयन कर सके।
- इसी उपबंध के तहत लगभग हर राज्य ने एक या एक से अधिक भाषा को अपनी राज्य भाषा तथा सरकारी भाषा के रूप में ग्रहण किया है जो निम्न है
- आंध्र प्रदेश तेलुगू जोगी वहां की सरकारी भाषा है
- अरुणाचल प्रदेश अंग्रेजी वहां की सरकारी भाषा है
- असम वहां की सरकारी भाषा असमिया है तथा बंगाली द्वितीय सरकारी भाषा है।
- बिहार की सरकारी भाषा हिंदी है तथा उर्दू दूसरी सरकारी भाषा।
- छत्तीसगढ़ की सरकारी भाषा हिंदी है
- गोवा कोकडी़ वहा की सरकारी भाषा है। दूसरी सरकारी भाषा के रूप में मराठी भाषा को यूज किया जाता है।
- गुजरात में सरकारी भाषा के रूप में गुजराती भाषा का प्रयोग किया जाता है तथा हिंदी को द्वितीय भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- हरियाणा में हिंदी सरकारी भाषा के रूप में यूज़ की जाती है तथा द्वितीय सरकारी भाषा के रूप में पंजाबी यूज़ की जाती है।
- हिमाचल प्रदेश में सरकारी भाषा के रूप में हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है तथा द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता है।
- जम्मू कश्मीर में उर्दू भाषा का प्रयोग सरकारी भाषा के रूप में किया जाता है
- झारखंड में हिंदी भाषा सरकारी भाषा के रूप में यूज़ की जाती है तथा उर्दू द्वितीय सरकारी भाषा के रूप में यूज की जाती है।
- कर्नाटक में सरकारी भाषा के रूप में कन्नड़ भाषा की यूज़ की जाती है।
- मध्यप्रदेश में हिंदी भाषा का यूज सरकारी भाषा के रूप में किया जाता है।
- केरल में सरकारी भाषा के रूप में मलयालम भाषा का यूज किया जाता है।
- मणिपुर में सरकारी भाषा के रूप में मणिपुरी भाषा का यूज किया जाता है तथा द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का यूज किया जाता है
- ।
- मेघालय में सरकारी भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता है तथा खांसी और गारो भाषा द्वितीय सरकारी भाषा के रूप में उसे की जाती है।
- मिजोरम में मिजो, अंग्रेजी और हिंदी भाषा का प्रयोग सरकारी भाषा के रूप में किया जाता है।
- नागालैंड में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग सरकारी भाषा के रूप में किया जाता है
- उड़ीसा में उड़िया सरकारी भाषा के रूप में किया जाता है तथा द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता है।
- पंजाब में पंजाबी सरकारी भाषा के रूप में यूज किया जाता है।
- राजस्थान में हिंदी सरकारी भाषा के रूप में यूज किया जाता है तथा अंग्रेजी द्वितीय सरकारी भाषा के रूप में यूज किया जाता है।
- तमिलनाडु में सरकारी भाषा के रूप में तमिल भाषा का यूज किया जाता है तथा द्वितीय अंग्रेजी भाषा के रूप में यूज किया जाता है।
- त्रिपुरा में बंगला अंग्रेजी एवं कोकबोरोक भाषा का प्रयोग सरकारी भाषा में किया जाता है।
- तेलंगाना में तेलुगु एवं उर्दू भाषा का प्रयोग सरकारी भाषा के रूप में किया जाता है।
- उत्तर प्रदेश में हिंदू सरकारी भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा द्वितीय सरकारी भाषा के रूप में उर्दू का प्रयोग किया जाता है।
- उत्तराखंड में द्वितीय भाषा के रूप में संस्कृत का यूज किया जाता है तथा प्रथम भाषा के रूप में हिंदी भाषा का प्रयोग में लाया जाता है।
- पश्चिम बंगाल में बंगाली और अंग्रेजी सरकारी भाषा के रूप में यूज किया जाता है इसके अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मई 2011 में चार अन्य भाषाओं उर्दू गुरुमुखी नेपाली ओलचिकी ओड़िया।
- संघ एवं राज्य के बीच एवं एक राज्य के दूसरे राज्य से पत्राचार की भाषा
भाग 17 के अध्याय 2 के अनुच्छेद 346 में या उपबंध किया गया है कि शासकीय प्रयोग के लिए संघ जिस भाषा को प्राधिकृत करेगी वही भाषा किसी राज्य संघ के बीच अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्राचार की भाषा होगी इसमें दूसरा प्रावधान यह भी रखा गया है कि यदि दो राज्य आपस में सहमत हूं और अनुबंध करते हैं कि उनके बीच पत्राचार की भाषा हिंदी होगी तो वह हिंदी भाषा का प्रयोग पत्राचार में कर सकते हैं।
जनसंख्या समर्थित भाषाएं 347 अनुच्छेद
अनुच्छेद 343 में यह प्रावधान किया गया है कि अगर किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग मांग करता है कि उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को सरकारी मान्यता मिलनी चाहिए तो राष्ट्रपति द्वारा समाधान होने पर वह आदेश द्वारा उस भाषा को सरकारी मान्यता दे सकते हैं।
विश्व हिंदी सम्मेलन
विश्व हिंदी सम्मेलन की संकल्पना राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा द्वारा 1973 में की गई थी संकल्पना के बाद राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के तत्वाधान में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 12 जनवरी 1975 को नागपुर भारत में आयोजित किया गया था
सम्मेलन का उद्देश्य
इस विषय पर विचार विमर्श करना था कि तत्कालीन वैश्विक परिस्थिति में हिंदी किस प्रकार सेवा का साधन बने एवं महात्मा गांधी की सेवा भावना से अनु प्रमाणित हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रवेश पाकर विश्व भाषा के रूप में समस्त मानव जाति की सेवा की ओर अग्रसर हो सके साथ ही यह किस प्रकार भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र वसुधैव कुटुंबकम विश्व के समक्ष प्रस्तुत करके एक विश्व एक मानव परिवार की भावना का प्रचार एवं संचार करें।
इसका दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य इसे व्यापकता प्रदान करना था ना कि केवल भावनात्मक स्तर तक सीमित करना। इस संकल्पना को 1975 में नागपुर में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में मूर्त रूप दिया गया। तब से लेकर अब तक समय-समय पर विदेश मंत्रालय द्वारा विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है।
पहली बार 10 से 14 जनवरी 1975 में नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ था।
10 वा हिंदी सम्मेलन 10 से 12 सितंबर 2015 भोपाल भारत में आयोजित हुआ था।
हिंदी दिवस 14 सितंबर
केंद्र सरकार द्वारा हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है इसका उद्देश्य हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार करना इसी दिन 14 सितंबर 1949 को देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी भाषा को अंगीकृत किया गया था।