राज्यपाल
संविधान के अनुच्छेद 153 के अनुसार हर राज्य का एक राज्यपाल होगा राज्यपाल राज्य स्तर पर सावधानी प्रमुख होता है अनुच्छेद 154 यह कहता है कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी कार्यपालिका प्रमुख होने के नाते वह दोहरी भूमिका निभाता है
- राज्य के प्रमुख के रूप में तथा
- केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में जो केंद्र एवं राज्य के बीच कड़ी के रूप में काम करता है
राज्यपाल की नियुक्ति
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष के लिए की जाती है अनुच्छेद 155 में यह कहा गया है कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उसके मोहर लगे हस्ताक्षर द्वारा ठीक उसी प्रकार की जाती है जिस तरह कनाडा में राज्यपालों की नियुक्ति गवर्नर जनरल द्वारा होती है।
पुन नियुक्ति :-
राष्ट्रपति चाहे तो किसी राज्यपाल को उसी राज्य या अन्य किसी राज्य के लिए पुनर्नियुक्त कर सकता है।
दो या अधिक राज्यों के लिए एक राज्यपाल की नियुक्ति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में यह प्रावधान है कि भारत के प्रत्येक राज्य में राज्यपाल होगा किंतु 1956 में किए गए संशोधन के अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है भारतीय संविधान के अनुसार राज्यों में राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत अथवा नियुक्ति किया जाता है अर्थात उसका निर्वाचन नहीं होता।
राज्यपाल की नियुक्ति पर संविधान सभा में विचार विमर्श
राज्यपाल की चयन नीति को लेकर संविधान सभा में व्यापक विचार विमर्श किया गया था और इस संबंध में अनेक वैकल्पिक प्रस्ताव पेश किए गए थे मुख्य रूप से चार विकल्पों पर विचार किया गया था –
वयस्क मताधिकार के जरिए चुनाव – राज्य की जनता द्वारा सीधे राज्यपाल का चुनाव कराने का प्रस्ताव इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया था कि राज्य में सीधे जनता द्वारा चुने हुए तो शासन अध्यक्षों क्रमशः राज्यपाल और मुख्यमंत्री के होने से अनेक जटिलताएं पैदा हो सकती हैं ऐसी आशंका व्यक्त की गई कि जनता द्वारा चुना हुआ राज्यपाल किसी मुद्दे पर जनता द्वारा चुने हुए मुख्यमंत्री से सीधे किस आधार पर प्रतिस्पर्धा कर सकता है कि उसे भी जनता का प्रस्ताव विश्वास प्राप्त है।
निचले सदन के सदस्यों द्वारा चुनाव अथवा जनप्रतिनिधि प्रणाली के जरिए विधायिका के दोनों सदनों द्वारा चुनाव
राज्य विधायिका द्वारा राज्यपाल का चुनाव करने का प्रस्ताव इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि यदि विधायिका ने राज्यपाल का चुनाव किया तो वह बहुमत दल अथवा बहुमत प्राप्त विभिन्न दलों के गठबंधन का खिलौना मात्र बनकर रह जाएगा।
राज्य की विधायिका के निचले सदन अथवा सुझाए गए एक पैनल के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा चुनाव
इस विकल्प को भी सदस्यों ने इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि यदि राष्ट्रपति को एक पैनल में से ही चुनना पड़ा तो उसके चुनाव का क्षेत्र सीमित हो जाएगा।
राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति –
अंत में यह निर्णय लिया गया कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष के लिए की जाए इसके अनुसार संविधान में अनुच्छेद 155 को जोड़ा गया जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
कार्यकाल
संविधान के अनुच्छेद 156 में राज्यपाल के कार्यकाल के संदर्भ में जानकारी दी गई है अनुच्छेद 156 एक में यह भी व्यवस्था है कि राज्यपाल तब तक अपने पद पर बना रह सकता है जब तक राष्ट्रपति की इच्छा हो अनुच्छेद 156( 3) के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल अपनी नियुक्ति की तिथि से 5 वर्ष तक अपने पद पर बना रह सकता है
स्थानांतरण
राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह राज्यपाल को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर दे अथवा उसी राज्य में फिर से नियुक्ति कर दें।
त्यागपत्र और पद मुक्ति
अनुच्छेद 156( 2 )के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति के पास अपना त्यागपत्र भेजकर पद मुक्त हो सकता है लेकिन अगर सरकार की मंशा के अनुरूप हुआ इस्तीफा नहीं देता तो राष्ट्रपति द्वारा उसे किसी भी समय बुलाया जा सकता है संविधान में राज्यपाल को पदच्युत करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
योग्यताएं और शर्त
अनुच्छेद 157 और 158 के अनुसार राज्यपाल पद के लिए निम्नलिखित योग्यताएं और शर्तें
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसने 35 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
- संसद अथवा राज्य के विधान मंडल के किसी भी सदन का सदस्य ना हो।
- किसी भी लाभ के पद पर ना हो।
- इसके अलावा राज्यपाल के पद के संबंध में कुछ और बातें जोड़ी गई हैं जो निम्नलिखित हैं
- वह राज्य से बाहर का व्यक्ति हो।
- वह राज्य की स्थानीय राजनीति से घनिष्ठा से ना जुड़ा हो।
- पिछले कुछ समय में उसने सक्रिय राजनीति में भागना लिया हूं।
- बिना किसी किराए के उसे राजभवन उपलब्ध होगा।
- यदि उसे दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाए तो वह उपलब्धियां और भत्ते राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार संबंधित राज्य मिलकर प्रदान करेंगे।
- वह संसद द्वारा निर्धारित सभी तरह की उपलब्धियों विशेष अधिकारों और भक्तों के लिए अधिकृत होगा।
शपथ या प्रतिज्ञान
अनुच्छेद 159 यह कहता है कि प्रत्येक राज्यपाल और जो व्यक्ति राज्यपाल के कृतियों का निर्वहन कर रहा है वह अपना पद ग्रहण करने से पहले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश के समक्ष शपथ ग्रहण करेगा।