प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने 19 जुलाई 2016 को ट्रांसजेंडर परसंस बिल 2016 को मंजूरी दे दी भारत सरकार की कोशिश इस बिल के जरिए एक व्यवस्था लागू करने की है, जिससे किन्नरों को भी सामाजिक जीवन, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आजादी से जीने के अधिकार मिल सके। यह उम्मीद की जा रही है कि यह विधेयक भारतीय किन्नरों के लिए मददगार साबित होगा। हमारे देश में ऐसे लोगों को सामाजिक कलंक के तौर पर देखा जाता है। इनके लिए काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। यह विधेयक भी इसी दिशा में एक प्रयास है। यह भी उम्मीद की जा रही है कि किन्नरों के साथ अपमानजनक और भेदभाव वाले व्यवहार में कमी लाने में यह विधेयक कामयाव होगा। विधेयक के जरिए किन्नरों को मुख धारा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, जिसके लिए वे लंबे समय से प्रयत्नशील हैं।
विधेयक में दंडात्मक प्रावधान
विधेयक के अनुसार किन्नरों का उत्पीड़न या प्रताड़ित करने पर किसी भी व्यक्ति को 6 महीने की जेल हो सकती है। ऐसे मामलों में अधिकतम सजा कुछ वर्षों की भी हो सकती है।
सामाजिक लाभ
इस विधेयक के मुताबिक, किन्नरों को ओ. बी. सी. (अन्य पिछा वर्ग) में शामिल करने का प्रस्ताव है। हालांकि, यह तभी लागू होगा, जब ये अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं होंगे। यानी यदि वे अ.जा. अ.ज.जा. का हिस्सा है तो उन्हें उसका ही लाभ मिलता रहेगा।
किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता
भारत की शीर्ष न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी थी। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की अर्जी पर यह फैसला सुनाया गया था। इस फैसले की ही बदौलत, हर किन्नर को जन्म प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला। इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें एक-दूसरे से शादी करने और तलाक देने का अधिकार भी मिल गया । वे बच्चों को गोद ले सकते हैं और उन्हें उत्तराधिकार कानून के तहत वारिस होने एवं अन्य अधिकार भी मिल गए। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में ये भी कहा कि किन्नरों को सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग मानकर रोजगार में आरक्षण दिया जाना चाहिए। न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को किन्नरों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ बनाने के भी निर्देश दिए हैं।
शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में किन्नरों को आरक्षण
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी की पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में किन्नरों को आरक्षण दिए जाने का निर्देश दिया।
भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए विशेष अधिकारी भारतीय संविधान के भाग-III में वर्णित मौलिक अधिकारों
में अनुच्छेद-30 के अंतर्गत धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ भाषाई अल्पसंख्यकों को भी अपनी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके साथ-साथ अनुच्छेद-350 (ख) के अंतर्गत राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वो भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति करेगा। हालांकि मूल संविधान में भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए त विशेष अधिकारी के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है। बाद में राज्य पुनर्गठन आयोग 1953-55 की सिफारिश के बाद वर्ष 1956 के सातवें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान के भाग के सातवें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान के भाग XVII में अनुच्छेद 350 (ख )को जोड़ा गया।