शासन की शक्ति का वास्तविक केंद्र : समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित अवश्य होती है परंतु उसका उपयोग वास्तविक रूप से प्रधानमंत्री करता है व्यवहारिक रूप से देखें तो पता चलेगा कि प्रधानमंत्री का पद भारत की शासन व्यवस्था का सबसे शक्तिशाली पद है। कहने को तो राष्ट्रपति भारत का राष्ट्रीय अध्यक्ष है परंतु उसके द्वारा क्रियान्वित की गई कार्यकारी शक्तियों को प्रधानमंत्री का समर्थन चाहिए होता है। अब सवाल यह है कि राष्ट्रपति को कार्यकारी प्रमुख होते हुए भी नाम मात्र का शासक क्यों कहा जाता है? भारत में प्रधानमंत्री का पद इतना शक्तिशाली क्यों है जबकि प्रधानमंत्री पद के लिए कोई निर्वाचन भी नहीं होता है और ना ही जनता प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री के रूप में चुनती है यहां तक की संविधान में भी प्रधानमंत्री के निर्वाचन और नियुक्ति के लिए कोई विशेष प्रक्रिया नहीं दी गई है इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए हमें निम्न बातों को समझना होगा
- राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख होता है जबकि प्रधानमंत्री सरकार अथवा सत्ता में मौजूद दल का प्रमुख होता है।
- संविधान में सरकार का स्वरूप संसदीय है अर्थात हमारे देश का शासन संसदीय प्रजातंत्र पर आधारित है जिसकी शुरुआत ब्रिटेन में हुई है।
- भारत का राष्ट्रपति वास्तविक रुप से शासन नहीं करता बल्कि राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है जबकि प्रधानमंत्री राष्ट्र की शासन व्यवस्था का प्रमुख होता है यहां शासन का अर्थ संविधान के दायरे में लागू हो रहे विधि के शासन से है।
- राष्ट्रपति अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह से करता है । बहुत कम अवसर पर राष्ट्रपति को स्वविवेक से अथवा स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अवसर मिलता है।
- राष्ट्रपति भले ही प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है परंतु ऐसा नहीं है कि वह किसी को भी प्रधानमंत्री नियुक्ति कर सकता है उसे हर हालात में निर्वाचित सांसदों के सबसे बड़े दल को प्रधानमंत्री देनी होती है राष्ट्रपति सबसे बड़े दल अथवा दलों के गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है जिसे 1 महीने के अंदर संसद में विश्वास मत हासिल करना होता है इसका अर्थ यह हुआ कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के प्रधानमंत्री बने रहने का आधार केवल और केवल संसद में हासिल विश्वास मत है ना कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति।
- राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की नियुक्ति एक समाधान एक उपक्रम है संविधान का अनुच्छेद 75 बस इतना ही कहता है राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेगा।
- जब सदन में किसी दल का हिस फर्स्ट बहुमत ना हो तो भी राष्ट्रपति उनमें से सबसे बड़े दलिया दलों के गठबंधन को वाले सरकार बनाने का अवसर देता है प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाने की अवस्था में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के उत्तराधिकारी के चुनाव और नियुक्ति के लिए स्वविवेक से निर्णय लेता है परंतु यह निर्णय तभी राष्ट्रपति द्वारा चयनित व्यक्ति को प्रधानमंत्री बने रहने दे सकता है। अगर उसे बहुमत अथवा विश्वास मत हासिल करने लायक क्षमता वाले दल अथवा दलों के गठबंधन का समर्थन भी प्राप्त हो इसी कारण ” मुरले ” ने प्रधानमंत्री को समकक्ष में प्रथम की संज्ञा दी है
कार्यवाहक प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री की आत्मिक मृत्यु की अवस्था में कार्यवाहक प्रधानमंत्री चुने जाने की प्रथा है 1984 में इंदिरा गांधी की अवकाश में हत्या के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सीने राजीव गांधी को सीधा प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। हालांकि देवगन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले दल कांग्रेस ने बाद में राजीव गांधी को अपना नेता भी चुनाव। लेकिन यह प्रथा के अनुरूप नहीं था। हां अगर कांग्रेसी इंदिरा गांधी की मृत्यु के तुरंत बाद राजीव गांधी को अपना नेता चुन लेती तब राष्ट्रपति को कार्यवाहक प्रधानमंत्री चुनने की आवश्यकता नहीं होती।
भारत के प्रधानमंत्रियों के बारे में कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- जवाहरलाल नेहरू सबसे लंबी अवधि 1947 से 1964 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहे
- गुलजारी लाल नंदा दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए पहली बार जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद और दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद।
- मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे भारत के गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मेवा पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले ही त्यागपत्र दिया था मोरारजी देसाई को पाकिस्तान के सबसे बड़े असैनिक सम्मान ” निशान ए पाकिस्तान ” से भी सम्मानित किया गया था।
- राजीव गांधी भारत के युवा प्रधानमंत्री थे वह 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बने थे। 7 रेस कोर्स में रहने वाले पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे।
- पीवी नरसिम्हा राव दक्षिण भारत के पहले प्रधानमंत्री थे।
- एच डी देवगौड़ा व पहले प्रधानमंत्री थे जो राज्यसभा के सदस्य थे।
- राज्यसभा के सदस्य रहे प्रधानमंत्रियों में डॉक्टर मनमोहन सिंह सबसे लंबी अवधि 2004 से 2014 तक पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री थे।
- अब तक 6 ऐसे प्रधानमंत्री हुए जो किसी न किसी राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं मोरारजी देसाई मुंबई प्रांत, चरण सिंह अविभाजित उत्तर प्रदेश, विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश, पीवी नरसिम्हा राव आंध्र प्रदेश, एच डी देवगौड़ा का नाटक, नरेंद्र मोदी गुजरात।
योग्यताएं नियुक्ति , बर्खास्तगी एवं अन्य
योग्यताएं
- वह भारत का नागरिक हो।
- लोकसभा या राज्यसभा का सांसद हो अथवा नियुक्ति के 6 महीने के भीतर लोकसभा अथवा राज्य सभा सांसद निर्वाचित हो जाता हो।
नियुक्ति एवं बर्खास्तगी
अनुच्छेद 75 यह कहता है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत। हालांकि राष्ट्रपति उसे सदन में बहुमत खो देने की अवस्था में ही हटा सकता है अन्यथा नहीं। इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि मंत्री भी राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहेंगे। मंत्री व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति के प्रति परंतु सामूहिक रूप से राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदाई होगा।
शपथ ग्रहण
प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति उसे पद और गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
पूर्ण नियुक्ति
एक व्यक्ति एक से अधिक बार भी प्रधानमंत्री नियुक्त हो सकता है अगर वह प्रधानमंत्री के लिए वांछित योग्यताएं रखता हो।
वेतन एवं भत्ते
प्रधानमंत्री के वेतन एवं भत्ते सांसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं वर्तमान में प्रधानमंत्री को 1,60000 प्रतिमाह वेतन स्वरूप मिलता है।
वरीयता अनुक्रम
वरीयता अनुक्रम में प्रधानमंत्री का स्थान राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद तीसरे स्थान पर होता है।
प्रधानमंत्री की शक्तियां एवं कार्य
प्रधानमंत्री केंद्रीय परिषद का प्रमुख और लोकसभा का नेता होता है सावधानी किस तिथि के हिसाब से राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कार्य करते हैं प्रधानमंत्री के रूप में उसकी शक्तियां और कार्यों को निम्न शब्दों में समझाया जा सकता है
राष्ट्रपति के संदर्भ में
अनुच्छेद 74 यह कहता है कि राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली किसी मंत्रिपरिषद की सलाह अनुसार कार्य करेगा हालांकि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल से उसकी सलाह पर विचार विमर्श पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। परंतु 3:45 के बाद ही दी गई सलाह को उसे मानना पड़ेगा। वह राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच की मुख्य पड़ी है और राष्ट्रपति के संदर्भ में अपनी शक्तियों और कर्तव्यों का उपयोग निर्णय तरीके से करता है अनुच्छेद 78 प्रधानमंत्री के कर्तव्य के बारे में कहता है कि –
- वह संघ के कार्यों के प्रशासकीय और विधेयक संबंधी विषयों के संबंध में मंत्री परिषद के सभी विचारों और निर्णयों को राष्ट्रपति के समक्ष रखता है।
- संघ के प्रशासन और विभिन्न स्थापना से जुड़ी जानकारियां राष्ट्रपति द्वारा मांगे जाने पर देता है।
- जिस विषय पर अब तक मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया हो उस पर राष्ट्रपति द्वारा आदेश किए जाने पर मंत्री परिषद के समक्ष विचार के लिए रखता है।
- राष्ट्रपति के मुख्य परामर्शदाता के रूप में निम्न अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में परामर्श देता है।
1.भारत का महान्यायवादी 2. भारत का महान यंत्र एवं लेखा परीक्षक 3. संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष 4. संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य 5. चुनाव आयोग के सदस्य 6. चुनाव आयोग के अध्यक्ष 7. वित्त आयोग के अध्यक्ष 8. वित्त आयोग के सदस्य
और कई ऐसे अन्य महत्वपूर्ण पद जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है
संसद के संदर्भ में:
संसद के निचले सदन के नेता के रूप में वह शक्तियों का प्रयोग करता है
- संसद में सरकार की नीतियों की घोषणा करना।
- आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति से लोकसभा भंग करने की सिफारिश करना।
- राष्ट्रपति को संसद का सत्र आहूत एवं सत्रावसान करने का परामर्श देना।
मंत्री परिषद के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री
मंत्री परिषद के प्रमुख के रूप में हुआ निर्णय शक्तियों का प्रयोग करता है-
- अपने दल के सांसदों को मंत्री बनाने की सिफारिश राष्ट्रपति से करना।
- मंत्रियों के विभागों का आवंटन करना।
- आवश्यकता पड़ने पर मंत्रियों के विभागों में फेरबदल करना।
- किसी मंत्री को पद से हटने अथवा राष्ट्रपति को उसके बर्खास्तगी के लिए सलाह देना।
- सभी मंत्रियों और उनकी गतिविधियों को निर्देशित एवं नियंत्रित करना।
- सभी मंत्रियों एवं मंत्रालय के बीच संबंध में बनाए रखने में मुख्य भूमिका अदा करना।
प्रधानमंत्री के बिना मंत्रिपरिषद
मंत्री परिषद अगर वाहन है तो प्रधानमंत्री उसका इंजन है मंत्रिपरिषद अगर पहिया है तो प्रधानमंत्री उसकी दूरी है बिना दूरी के ना तो पहिया घूम सकता है नहीं बिना इंजन के वाहन चल सकता है। प्रधानमंत्री के त्यागपत्र देने से पूरा मंत्रिमंडल भी विघटित हो जाता है प्रधानमंत्री की मृत्यु होने पर भी मंत्रिपरिषद तक निष्क्रिय जैसे हो जाता है जब तक वह कोई नया प्रधानमंत्री न चुन ले। जबकि किसी मंत्री की मृत्यु अथवा त्यागपत्र देने की अवस्था में प्रधानमंत्री का पद अक्षुण्ण रहता है और अगर वह चाहे तो उस खाली मंत्री पद पर दल के किसी और संसद को नियुक्त करने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकता है।
प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रिमंडल का गठन
पद संभालने के बाद कार्य के निष्पादन के लिए प्रधानमंत्री एक मंत्रिमंडल का गठन करता है और मंत्रियों को उनकी योग्यता के हिसाब से मंत्रालय अथवा विभागों का आवंटन करता है 91 संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के द्वारा अनुच्छेद 75 ( 1क) के तहत यह व्यवस्था की गई कि केंद्रीय मंत्री परिषद में प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या लोकसभा के कुल सदस्य की संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री की अन्य शक्तियां एवं कार्य
शासन का प्रमुख होने के कारण प्रधानमंत्री को अपार शक्तियां प्राप्त हैं मुनरो ने प्रधानमंत्री को राज्य की नौका का कप्तान तो जेनिंग्स ने उसे उगते सूरज के समान माना है जिसके चारों ओर ग्रह घूमते हैं वह चाहे तो कुछ ऐसे विभागों आयोगों अथवा परिषदों का गठन कर सकता है जो गैर संवैधानिक है अर्थात जो संविधान में वर्णित नहीं है उसकी अन्य शक्तियों और कार्यों को निम्नलिखित तरीके से समझा जा सकता है।
- साधारण तौर पर सबसे महत्वपूर्ण विभाग उसके पास होते हैं जैसे परमाणु ऊर्जा अथवा परमाणु शोध से संबंधित, अंतरिक्ष अथवा अंतरिक्ष अनुसंधान विभाग, इसके अलावा ऐसे सभी विभाग उसके पास होते हैं जो उसने किसी और मंत्री को आवंटित ना किया हो।
- योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है जो एक गैर सावधानी का योग है योजना आयोग का नया नाम नीति आयोग है।
- वह राष्ट्रीय विकास परिषद और राष्ट्रीय एकता परिषद का अध्यक्ष होता है।
- वह अंतर राज्य परिषद और राष्ट्रीय एकता परिषद का अध्यक्ष होता है।
- विदेश मंत्रालय में विदेश मंत्री के होने के उपरांत की व विदेश नीति के निर्धारण और क्रियान्वयन में मुख्य भूमिका निभाता है।
- जिस तरह राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रथम प्रतिनिधि कहा जाता है उसी प्रकार प्रधानमंत्री जनता का प्रथम प्रतिनिधि होता है।
- वह शासन अध्यक्ष भी होता है और केंद्रीय शासन का प्रमुख प्रवक्ता भी।
- वास्तव में राष्ट्रपति में निहित सारी संविधानिक शक्तियों का उपयोग और क्रियान्वयन प्रधानमंत्री के द्वारा ही होता है।
उप प्रधानमंत्री
भारत में उप प्रधानमंत्री का कोई समाधान एक पद नहीं है इसे तुष्टीकरण स्थायीत्व गठबंधन दलों के निरंतर सहयोग की अपेक्षा और अधिक से अधिक सांसदों को साथ लेकर चलने की नीति का पद माना जा सकता है अब तक जितने भी उपप्रधानमंत्री हुए उन्हें किसी न किसी तरह या हर तरह से अपने प्रधानमंत्री के लगभग समान या थोड़े कम लोकसभा सांसदों का समर्थन प्राप्त था और उन्हें नजर अंदाज़ का दल की अखंडता को बनाए रखने में अनेक कठिनाइयां थी इसकी परिपाटी सरदार वल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री बनाए जाने से शुरू हुई जिस सरकार के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे सरदार वल्लभभाई पटेल कोई भी जबरदस्त समर्थन प्राप्त था और भारत की जनता की उन्हें बहुत पसंद करती थी उधर जवाहरलाल नेहरू भी कद्दावर और लोकप्रिय नेता थे और उन्हें भी कांग्रेश और भारतवासियों का अपार समर्थन प्राप्त था ऐसी स्थिति में टकराव की आशंका थी और इस स्थिति से निपटने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल को प्रधानमंत्री का पद देकर सम्मानित और संतुष्ट करने की बात उठी। अब वह इस पद से कितने प्रश्न अथवा भगवंत हुए अलग विषय है लेकिन यह बात तो अवश्य थी कि वह भी मंत्रिमंडल के लगभग केंद्र में थे ऐसा नहीं है कि हर सरकार के साथ ऐसा हुआ। जब किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को प्रधानमंत्री का पद देना पड़ा लेकिन कुल मिलाकर अब तक भारत में 7 उपप्रधानमंत्री हो चुके हैं
- -सरदार वल्लभभाई पटेल
- मोरारजी देसाई
- चौधरी चरण सिंह
- जगजीवन राम
- यशवंतराव चौहान
- चौधरी देवी लाल
- लालकृष्ण आडवाणी
नोट
जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे तब भारत में चरण सिंह और जगजीवन राम दोनों को प्रधानमंत्री थे यह शक्ति संतुलन और तुष्टीकरण का अनोखा समीकरण था।
चौधरी देवीलाल दो प्रधानमंत्रियों विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर के कार्यकाल में हूं प्रधानमंत्री रहे थे।
कई बार इस पद को स्थाई बनाने की बात हुई थी लेकिन कुछ हुआ नहीं क्योंकि संभवत उप प्रधानमंत्री पद के क्या दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।